अमरनाथ यात्रा: एक धार्मिक और आध्यात्मिक सफर
अमरनाथ यात्रा, यह यात्रा हर साल भारतीय धार्मिक समुदाय के लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है, अमरनाथ यात्रा एक अद्वितीय और आनंदमय पर्व है। इस यात्रा को हम हिमाचल प्रदेश और जम्मू - कश्मीर राज्य के बीच से होकर पूरी करते हैं। यह यात्रा जम्मू - कश्मीर के अमरनाथ गुफा में भगवान शिव की मूर्ति के दर्शन के लिए की जाती है। यह यात्रा हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के पहले चार दिनों के दौरान होती है। इस यात्रा में भाग लेने से पूरे माहौल में शांति, आनंद और आत्म अनुभव का एहसास होता है। इस लेख में हम आपको अमरनाथ यात्रा कैसे की जाए, इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
अमरनाथ यात्रा की अमर कथा
अमरनाथ यात्रा भारत की प्रमुख धार्मिक यात्राओं में से एक है, जिसे जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित अमरनाथ गुफा तक पहुंचकर किया जाता है। इस यात्रा का इतिहास व वेदों में भी उल्लेख है।
अमरनाथ की यह कथा कैलाश पर्वत से शुरू होती है। एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उन रूद्र मोतियों की माला के बारे में पूछा, जिसे उन्होंने अपने सिर पर धारण किया हुआ था। इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती को समझाते हुए ये बताया कि सबसे पहले उन्होंने इन मोतियों को उनके जन्म के प्रतीक के रूप में पहनना शुरू किया था। जब - जब वह पैदा होती हैं, तब - तब एक मनका का उस माला में जोड़ा जाता है। यह सुन माता पार्वती भगवान शिव से पूछती हैं, कि मैं हर बार क्यों मरती हूं और फिर पुनर्जन्म लेती हूं, जबकि आप तो अमर हैं। इस पर भगवान शिव उन्हें अपने अमर होने की सच्चाई के बारे में बताते हैं, जिसे अमर कथा कहा जाता है।
इस कहानी को सुनने के लिए माता पार्वती काफी उत्सुक हो जाती हैं और भगवान शिव से उस कहानी को सुनान के लिए कहती हैं। वहीं भगवान शिव यह चाहते थे कि उनके द्वारा बताए गए जीवन और मृत्यु के रहस्य को कोई भी न सुने। इसीलिए उन्होंने इस कहानी को सुनाने के लिए एक सुनसान गुफा में जाने का फैसला किया, ताकि कोई आम व्यक्ति या देवता वहां पर आसानी से ना पहुंच पाए। यही नहीं भगवान शिव उस रहस्य को अपने और माता पार्वती के बीच ही रहने देना चाहते थे। इसीलिए वे अपने सभी साथियों और सामान को रास्ते में ही छोड़ते हुए चले गए थे।
गुफा की ओर जाते हुए बाबा भोलेनाथ ने अपने बैल नंदी को पहलगाम में छोड़ दिया, जबकि अपनी जटा के अंध चंद्राकार को चंदनवाड़ी में ही रहने दिया। जिस सांप को वह अपने गले में लपेटते थे उसे शेषनाग में छोड़ दिया। यहां तक कि जीवन के पांच मूल तत्व जिसे वह धारण करते थे उसे पंचतरणी में छोड़ दिया।
यही नहीं अपने पुत्र गणेश को भी भगवान शिव ने महागुण पर्वत पर छोड़ने का फैसला लिया। यह सारे वही सामान है जो भक्तों को यात्रा के दौरान रास्ते में मिल जाते हैं।
इस कथा को सुनाने से पहले भगवान शिव यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कहीं कोई जीव उनके द्वारा सुनाई जाने वाली अमृता की कहानी को सुन ना सके। इसलिए उन्होंने कलाग्नि रुद्र की रचना की। इसके बाद उन्होंने कलाग्नी को यह आदेश दिया, की गुफा में आग लगा दे, ताकि किसी जीवित प्राणी के वहां पर निशाना न रह पाए। जब भगवान शिव पूरी तरह से संतुष्ट हो गए, कि अब गुफा में कोई नहीं है तब वह हिरण की खाल बिछे चबूतरे पर बैठ गए और माता पार्वती को अमृता की कहानी सुनाई।
कहानी सुनाने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती दोनों गुफा के अंदर एक बर्फलिंग में विलीन हो गए। अमृता कि वह कथा उसी गुफा की सीमा में रह गई और फिर उसे अमरनाथ गुफा के नाम से जाना जाने लगा। बता दें अमर का अर्थ है, सदा जीवित रहने वाला और नाथ का अर्थ है, भगवान। इस नाम से ही पता चलता है, कि यह वह अमर स्थान है, जहां भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को जीवन और मृत्यु के रहस्य के बारे में बताया था।
ऐसा माना जाता है, कि ऋषि भृगु ने सबसे पहले कश्मीर की घाटी में इस गुफा की खोज की थी। उन्होंने ही स्थानीय ग्रामीणों को दिव्य बर्फ के लिंग के अस्तित्व के बारे में बताया था। जब इस गुफा के बारे में आम लोगों को पता चला तो वे सभी श्रावण के पवित्र महीने यानी जुलाई,अगस्त के दौरान पैदल यात्रा कर बाबा के दर्शन के लिए आने लगे।
यात्रा की शुरुआत
इस यात्रा की शुरुआत पहलगाम के नुनवान और चंदनवाड़ी में स्थित शिविरों से होती है, फिर शेषनाग झील और पंचतरणी शिविरों में रात्रि विश्राम के बाद गुफा तक पहुंचती है। इस पूरे सफर को ही अमरनाथ यात्रा के नाम से जाना जाता है।
अमरनाथ कि यह पवित्र यात्रा हजारों लोगों की आय का स्रोत मानी जाती है, साथ ही इससे कई लोगों की जीविका भी चलती है। हिंदू मान्यताओं में बर्फ का यह शिवलिंग एक प्राकृतिक घटना से कहीं ज्यादा लोगों के विश्वास और उनकी भक्ति से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर उसी का प्रमाण है जहां सभी लोग बाबा भोलेनाथ से आशीर्वाद लेते हैं।
इस गुफा में जब भी वार्षिक स्नान होता है, तो शिवलिंग पर जल रूपी तेज़ का अभिषेक होता है। इस यात्रा में लाखों शिव भक्त हर साल भाग लेते हैं।
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अमरनाथ गुफा तक पहुंचने का रास्ता
अमरनाथ गुफा जम्मू और कश्मीर (भारत) में स्थित है। यह गुफा हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है। अमरनाथ गुफा पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले, आप जिस भी शहर में रह रहे हैं या जिस राज्य में रह रहे हैं, सबसे पहले आप वहां से ट्रेन की टिकट निकाल लीजिए। जम्मू तवी रेलवे स्टेशन के लिए निकाल सकते हैं, या फिर उधमपुर आ सकते हैं, या चाहे तो आप श्रीनगर भी आ सकते हैं। हालांकि, आपकी श्रीनगर तक ट्रेन नहीं जाती है, लेकिन अगर आप फ्लाइट से आना चाहते हैं, तो आपके पास दो एयरपोर्ट हैं। पहला जम्मू का एयरपोर्ट, दूसरा है श्रीनगर का एयरपोर्ट।
ट्रेन से आने की अगर हम बात करें तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मू तवी पड़ेगा। हालांकि, उधमपुर जम्मू तवी से आगे पड़ता है, लेकिन आप जम्मू तवी ही उतर जाए, क्योंकि जम्मू से आपको सुविधा ज्यादा मिलेगी।
अगर आप बाई ट्रेन आते हैं, तो सबसे पहले आप जम्मू तवी उतरना पड़ेगा। फिर वहां से आपको यात्री कैंप भगवती नगर जाना है। यहीं से आपको पहलगाम और बालटाल के लिए बसें मिलेगी। इन दोनों स्थानों से आपको पैदल यात्रा शुरू करनी है।
जम्मू से पहलगाम की दूरी लगभग 240 किलोमीटर है। इस दूरी को कवर करने के लिए आपको बस से लगभग 6 से 7 घंटे लग सकते हैं। इस दूरी का किराया प्रति व्यक्ति ₹500 से₹600 तक पड़ सकता है और आप पहलगाम पहुंच जाएंगे।
जम्मू से बालटाल की दूरी लगभग 360 किलोमीटर है और इस दूरी को कवर करने के लिए आपको लगभग 12 से 13 घंटे लग सकते हैं। इस दूरी का किराया प्रति व्यक्ति₹800 से ₹900 तक पड़ सकता है और आप बालटाल पहुंच जाएंगे।
1• पहलगाम मार्ग
पहलगाम से अमरनाथ की दूरी लगभग 48 किलोमीटर है, लेकिन आपको 48 किलोमीटर की दूरी पैदल तय नहीं करनी है। इसमें आपको 32 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी है और पहलगाम से 16 किलोमीटर की दूरी तक शेयरिंग टैक्सी जाती है जो आपको चंदनवाड़ी तक छोड़ देगी और उसके बाद फिर आपको पैदल यात्रा करनी है। अगर आप पैदल यात्रा नहीं कर सकते हैं तो आप खच्चर या पालकी भी किराए पर कर सकते हैं। चंदनवाड़ी से यात्रा शुरू करने के बाद जैसे ही आप 12 किलोमीटर की दूरी को तय करने के बाद बड़ागांव आएगा पहला पड़ाव (शेषनाग)। फिर शेषनाग से पंचतरणी के लिए आपको 14 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी। यह आपका दूसरा पड़ाव होगा। इसके बाद आप बाबा बर्फानी तक पहुंच जाएंगे।
2• बालटाल मार्ग
बालटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी 14 किलोमीटर है। इस 14 किलोमीटर की दूरी को आपको पैदल तय करना है। और आप बाबा बर्फानी तक पहुंच जाएंगे। बालटाल मार्ग छोटा जरूर है लेकिन इसमें बहुत ही खड़ी चढ़ाई है। इसीलिए यात्री पहलगाम वाला मार्ग अधिक पसंद करते हैं।
यात्रा के दौरान आपको भोजन के बारे में बिल्कुल चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यात्रा के दौरान सरकार द्वारा जो यात्रा की डेट निर्धारित की जाती है उस डेट से लेकर और यात्रा की अंतिम डेट तक रास्ते में जगह-जगह लंगर चलाए जाते हैं।
यात्रा का मार्ग कठिन है और यात्रियों को विशेष प्रकार की सामग्री और उपकरण की आवश्यकता पड़ती है। यात्रा की शुरुआत पहले से ही निर्धारित दिन को की जाती है और इसमें पूरे सात दिन का समय लगता है।
अमरनाथ यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
अमरनाथ यात्रा के लिए कौन - कौन से डाक्यूमेंट्स चाहिए
अमरनाथ यात्रा के लिए सबसे पहले आपके पास आधार कार्ड और यात्रा परमिट होना चाहिए, नहीं तो आप यात्रा करने से वंचित हो जाएंगे। यात्रियों के पास अपना स्वास्थ्य सर्टिफिकेट होना चाहिए। अमरनाथ यात्रा के लिए सबसे पहले आपका मेडिकल होगा फिर उसके बाद आपका रजिस्ट्रेशन होगा।
लोगों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1•अमरनाथ यात्रा पर कितना खर्च आता है?
- अमरनाथ यात्रा का खर्च व्यक्ति की आय, रहने की सुविधा और पर्यटन विशेषज्ञों द्वारा दिए जाने वाले पैकेज के आधार पर अलग-अलग होता है। अगर आप यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर बुक करते हैं, तो आपको अतिरिक्त ₹13000 का भुगतान करना पड़ेगा। आमतौर पर इस यात्रा का कुल खर्च लगभग₹10000 से लेकर₹25000 तक हो सकता है। यह केवल अनुमान है और असली खर्च वास्तविक स्थितियों व्यक्ति की सुविधाओं और यात्रा के विविध पहलुओं पर निर्भर करता है।
2•क्या बिना रजिस्ट्रेशन के अमरनाथ यात्रा हो सकती है?
- अमरनाथ यात्रा करने से पहले यात्रियों का ऑफलाइन या ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है। इस यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन आमतौर पर आधिकारिक वेबसाइट पर ऑनलाइन किया जा सकता है। रजिस्ट्रेशन के बिना आपके यात्रा की अनुमति नहीं मिलेगी। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आपके पास सभी आवश्यक दस्तावेज होने चाहिए।
3•अमरनाथ में कितने साल के बच्चे जा सकते हैं?
- नए नियमों के मुताबिक अब यात्रा के लिए उम्र निर्धारित की गई है। 13 साल से कम और 75 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को अमरनाथ यात्रा पर जाने की मंजूरी नहीं दी जाएगी।
4•अमरनाथ यात्रा के लिए कौन सा महीना अच्छा है?
- अमरनाथ यात्रा के लिए जुलाई और अगस्त के महीने को सर्वाधिक अच्छा माना जाता है। इन महीना में पहाड़ों के बर्फ का पिघलाव होता है और यात्रा के लिए सफर आसान होता है। इसके अलावा, श्रावण मास के 15 दिन तक यात्रा अधिक होती है।
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